Saturday, June 3, 2023

अनसुलझे सवाल

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आज बस देदे तु जवाब ईक सवाल का
फिक्र ना करना उसके बाद मेरे हाल का
खुश भी रहुंगा और रातें भी कटेंगी
चांद तारो से मेरी बाते भी बटेंगी
शायद कुछ पलो में दर्द भी उठेगा
महखाना शराब का फिर से टुटेगा
मगर फिक्र ना करना तु मेरे हाल का
आज बस देदे जबाब ईक सवाल का

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"मृत्यु मेरे दर पर" (Maut Mere Dar Par :- Luckey Chauhan)


"मृत्यु मेरे दर पर" 


 कुछ परिस्तिथियों से प्रेरित हो कर लिखी एक रचना जहा एक कवि  और लेखक का अभिमान दीखता है कैसे वो मृत्यु से भी पुरे विश्वास, घमंड के साथ बात करता है
"जिंदगी के लिये जीने की वजह चाहिए पर याद रखे मौत को टालने क लिए आपको खुद का सम्मान चाहिए"
"आप किसी को मिसाल तभी दे सकते है या तो आप खुद वो बने या फिर आप उसे कारगर साबित करे | "
"आपको प्रेरणा के लिए किसी कहानी की जरुरत नहीं आप खुद को खुद की नजर से देखे और खुद की हिम्मत पहचाने तो सच मानिये आप खुद एक प्रेरणा स्त्रोत है "

उम्मीद आपको ये रचना पसंद आये | 
कृपया आपका प्यार और साथ दें |


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"Jindagi" Experience of life.

 "Jindagi" Experience of life.


जिंदगी का दर्पण :- 

                      जिंदगी का अनुभव बचपन में कैसा लगता था पर बड़े होने पर नजरिया कैसा हो गया है | जिंगदी बचपन में कैसी लगती थी और अब कैसी हो गयी है | जरूर सुने ये रचना आपके और मेरी भावनाओ और अनुभवों के साथ जुड़ा है | 

पसंद आया हो तो उम्मीद करूँगा अपने प्यार और आशीर्वाद प्रतिक्रिया के द्वारा जरूर दें |

"लौट कर मत आना"

" लौट कर मत आना "


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सुनो अब तुम लौट कर मत आना
अब मैं नफरत पाल चुका हूं
अब मौसम बदल लिया है 
खुद को खुद के खिलाफ कर चुका हूं 
अब्र है शराब है और गमो की महफ़िल भी सजा चुका हूं 
न होगा अब किसी पर ऐतबार
खुद का वजूद मिटा चुका हूं
बस अब हो चुका जो होना था
अब तो खुद को भुला चुका हूं 
खौफ में रहता है दिल हसीन चेहरों को दुश्मन बन चुका हूं 
बस अब तुम लौट कर मत आना 
अब नफरत पाल चुका हूं 
यू नही के कुछ कर बैठूंगा बस फिर से मोहोब्बत कर बैठूंगा

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खामोश बचपन

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खामोश बचपन

मेरे अन्दर मुझसे सुन्दर ईक बच्चा रहता है
दुनिया से अलग प्यार के लिए हुमकता है। 
चाहता है फिर से चहकना, खेलना फिर से गिरना 
अब जो गिरूँ तो सम्भालने को फिर इक हाथ बड़े 
फिर अन्धेरो मे चल सकु बिना डरे 
चाहता है कि रोने पर कोई चुप कराने वाला हो 
भीड़ मे मेरा हाथ पकड़ने वाला हो 
कि फिर तुतला कर बोल को जी चाहता है 
फिर आखं मिचौली खेलने को जी चाहता है 
फिर परियो के देश जाने को जी चाहता है 
उंगलीयो पर तारे गिनने को जी चाहता है 
बारिश के पानी पर फिर चले कश्ति हमारी 
फिर उड़े जहाज कागजो के आसमान को चिरते हुए 

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गुस्ताखी

गुस्ताखी

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कुछ इश्क़ ने हमें बर्बाद किया
कुछ हुस्न के भी हम कायल थे
कसूर सिर्फ मेरा नहीं जो
उनकी नजरो से घायल थे
वो दौलत पे मिटते थे
हम उन पर जान लुटा बैठे
"इस कदर इश्क़ निभाया की
हम खुद को ही गवा बैठे "

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हमारे दर्मिया जो बदल गया है

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हमारे दर्मिया जो बदल गया है

अब बहोत कुछ है हमारे दर्मिया जो बदल गया है
अब मेरे लिए तुम्हारा प्यार बदल गया है
अब सुबह की शुरआत नहीं होती तुम्हारे सन्देश से
अब रात की चांदनी नहीं मिलती तुम्हारी बाहो में
अब हाल नहीं पूछती तुम्हारी आवाज
जब काम से थक कर घर आता हु
अब वो रूठना मनाना नहीं होता हमारे दर्मिया
अब हमारे बीच का वक़्त भी बदल गया है
अब बहोत कुछ है हमारे दर्मिया जो बदल गया है
अब मेरे लिए तुम्हारा प्यार बदल गया है
अब छम छम सी बारिश की बुँदे गीत नहीं जाती
अब छन छन सी तेरी पायल नहीं खनकती
अब हवाओ में जुल्फों की वो महक नहीं मिलती
अब मेरी सांसो में तेरी सांसे नहीं घुलती
अब तो बस दिन ही गुजार देता हु चलते चलते
हां रात तो होती है पर गुजार देता हु रोते रोते
अब बहोत कुछ है हमारे दर्मिया जो बदल गया है
अब मेरे लिए तुम्हारा प्यार बदल गया है

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"ना जाने क्यो"

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"ना जाने क्यो"
ना जाने क्यो आज दिल में कसक सी उठ रही है
फिर तु क्यो याद आ रहा है, जाने क्या इच्छा हो रही है
भुल तो गया था तुझे, ईक टुटे ख्वाब की तरह
फिर क्यो नींद की सिंको में, चाहत के धागे उलझ रहे है
दिल फिर कुछ उधेड़ बुन में लगा है
शायद मुझमे तु कही अब दोबारा जिंदा हो रही हो
उस एक कश से उठते धुंए में तेरा चेहरा उभरा था
लगा युं कि मुस्कुराते हुए मेरे करीब आ रही हो
"लक्कि" यहाँ सबकी हस्ती मिटने वाली है
पर फिर भी सब गरुर में जीए जा रहे है।

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सपना

"I had a dream"


इस पंक्ति में अकांशाये और जवाब है मगर सीमित।
खवाब देखा जाए तो खुली आँखों से देखा जाए और सपना सोते हुए बंद आंखों से देखा जाए।

दोनो में फर्क इतना है एक अपनी मर्जी से देखा जाता है और दूसरा हमारी अपेक्षाएं ओर अकांशाये दिखाती है जिसे स्वीकार करना अटपटा होता है।
सामने शराब की बोतल रख कर, पीने और न पीने की कशमकश सपना है।
पी कर उनकी यादों में गम होना खवाब है।
इस खवाब ओर सपने की जद्दोजहद जिंदगी है, जिंदगी कोई सपना, खवाब या रंगमंच नही ये सिर्फ जिंदगी है। आपके जाने के बाद क्या होगा ये क्यों सोचना जब आपने कभी आने से पहले का नही सोचा। 
मौत का सिर्फ इसलिए सोच जाता है क्योंकि हमें आदत हो चुकी हैसबको खुश रखने की, डर या परेशानी कि कही किसी को बुरा न लग जाये। इसी वजह से हम मरने से डरते है क्योंकि जानते है हमारे जाने के बाद हम अपनी दलीले नही दे पाएंगे। कोई रोयेगा उसे चुप नही करवा पाएंगे। कोई गुस्सा होगा उसे समझा नही पाएंगे। किसी को गले नही लगा पायंगे।

वही दूसरी तरफ कभी खुद के आने का नही सोचते , कि जब हम आये थे उस वक़्त कोई खुश था या नही, कोई परेशान था या नही। 
ऊपर लिखा बहोत अटपटा है! हैं ना ! 

भला किसी के पैदा होने पर क्यों दुख होगा। 

किसी घर में लड़की पैदा होने पर सास या पति को दुख होता है। अपाहिज लड़के के पैदा होने पर समाज को उस पर दया आती है।

अगर आपको लगता है की आपका जीवंत काल दयनीय है तो एक बार अस्पताल में जाओ या उस व्यक्ति विशेष से पूछिए जो मजबूरी में दब कर रो नही सकता, जो किसी से कुछ कह नही सकता मगर मुस्कान भी उसके चेहरे पर आंसू बन कर आता है।

"ऐसा भी हुआ होगा"

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एक चाँद ऐसा ऊगा होगा 
जिसे देखा मुझे याद किया होगा
एक दाग ऐसा दिखा होगा
जब खुद से खफा तू हुआ होगा
नूर उधार मांगने को कभी तुमने
इन तारो से सौदा किया होगा
बेवफा हो मान लिया पर दिल कहता है 
बिछड़ कर मुझसे तू भी तो रोया होगा

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क्या किया जाये

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तुम जिद्दी गीत सी लबो पर ठहर चुकी हो
ना भुलाया जा सके और न गया जा सके
अजीब सी कहानी बन कर रह गयी हो तुम
जो ना सुनाई जा सके न भुलाई जा सके
तुम उस जिद्दी बच्चे सी हो गयी हो
जिसे सब मिल भी जाये तो भी चुप होता नही
ख्वाहिशे तुमने चाँद तारो की रख दी
मैंने तुम्हे तो ढंग से छुआ भी नही
तुम उस पलको में ठहरे आंसू सी हो गयी हो
जिसे पोछा भी न जा सके और बहाया भी ना जा सके

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