इस पंक्ति में अकांशाये और जवाब है मगर सीमित।
खवाब देखा जाए तो खुली आँखों से देखा जाए और सपना सोते हुए बंद आंखों से देखा जाए।
दोनो में फर्क इतना है एक अपनी मर्जी से देखा जाता है और दूसरा हमारी अपेक्षाएं ओर अकांशाये दिखाती है जिसे स्वीकार करना अटपटा होता है।
सामने शराब की बोतल रख कर, पीने और न पीने की कशमकश सपना है।
पी कर उनकी यादों में गम होना खवाब है।
इस खवाब ओर सपने की जद्दोजहद जिंदगी है, जिंदगी कोई सपना, खवाब या रंगमंच नही ये सिर्फ जिंदगी है। आपके जाने के बाद क्या होगा ये क्यों सोचना जब आपने कभी आने से पहले का नही सोचा।
मौत का सिर्फ इसलिए सोच जाता है क्योंकि हमें आदत हो चुकी हैसबको खुश रखने की, डर या परेशानी कि कही किसी को बुरा न लग जाये। इसी वजह से हम मरने से डरते है क्योंकि जानते है हमारे जाने के बाद हम अपनी दलीले नही दे पाएंगे। कोई रोयेगा उसे चुप नही करवा पाएंगे। कोई गुस्सा होगा उसे समझा नही पाएंगे। किसी को गले नही लगा पायंगे।
वही दूसरी तरफ कभी खुद के आने का नही सोचते , कि जब हम आये थे उस वक़्त कोई खुश था या नही, कोई परेशान था या नही।
ऊपर लिखा बहोत अटपटा है! हैं ना !
भला किसी के पैदा होने पर क्यों दुख होगा।
किसी घर में लड़की पैदा होने पर सास या पति को दुख होता है। अपाहिज लड़के के पैदा होने पर समाज को उस पर दया आती है।
अगर आपको लगता है की आपका जीवंत काल दयनीय है तो एक बार अस्पताल में जाओ या उस व्यक्ति विशेष से पूछिए जो मजबूरी में दब कर रो नही सकता, जो किसी से कुछ कह नही सकता मगर मुस्कान भी उसके चेहरे पर आंसू बन कर आता है।
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